गांधीवादी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे जब जंतर-मंतर पर बैठे थे तो श्री दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने कई तरह के सवाल खड़े किये थे।
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सब जानते हैं कि भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था के लिए काला धन बहुत बड़ी चुनौती है। वस्तुत: काले धन की एक समानांतर अर्थव्यवस्था है जिसके बारे में लंबे समय से चर्चाएं हो रही हैं लेकिन कोई समाधान नहीं मिल रहा है।
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जब हम नये विचार ग्रहण करना बंद कर देते हैं तो हम बूढ़े हो जाते हैं। देश के समग्र विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम अन्य व्यक्तियों के दृष्टिकोण के प्रति दिमाग खुला रखें और उनसे लाभ लेने के लिए आवश्यक माहौल तैयार करें। युवाशक्ति की प्रशंसा इसीलिए की जाती है कि उनमें उर्जा तो बहुत होती है पर पूर्वाग्रह नहीं होता और वे दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति खुले दिमाग से सोचते हैं।
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सरकारों के बड़े-बड़े दावों के बावजूद गरीबी की समस्या हमें लगातार परेशान कर रही है। हम सिर्फ ‘भारत उदय’ और ‘जय हो’ केे नारे ही सुनते रह जाते हैं। विभिन्न सरकारें रोजगार गारंटी योजना, गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को आवासीय प्लाट, सस्ते आटा-दाल आदि की आपूर्ति आदि जैसी योजनाओं पर अरबों रुपये खर्च कर रही हैं। यह पैसा सरकारी खजाने में करदाता की कमाई के हिस्से के रूप में आया है। यह देखना उचित होगा कि गरीबी दूर करने की सरकारों की कोशिशें वास्तव में कितनी सही और कामयाब रही हैं।
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पश्चिमी देशों की कथा-कहानियों का एक प्रसिद्ध पात्र राबिनहुड है जो समृद्ध लोगों की संपदा लूटकर गरीबों में बांट देता था। दो दशक पहले तक भारतवर्ष में भी ऐसी फिल्मों का बोलबाला रहा है। भारतीय फिल्मों में भी हीरो अगर डाकू होता था तो वह गरीबों का हमदर्द और अमीरों के लिए यमराज होता था। आम जनता में ऐसी फिल्में खूब लोकप्रिय होती थीं क्योंकि अभावों से ग्रस्त आमजन को ऐसे डाकू में भी अपना मसीहा नज़र आता था।
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स्कूल-कॉलेज विधिवत औपचारिक शिक्षा के मंच हैं और व्यक्ति यहां से बहुत कुछ सीखता है। शिक्षित व्यक्ति के समाज में आगे बढऩे के अवसर अशिक्षित लोगों के मुकाबले कहीं अधिक हैं। एक कहावत है कि विद्वान व्यक्ति गेंद की तरह होता है और मूर्ख मिट्टी के ढेले की तरह, नीचे गिरने पर गेंद तो फिर ऊपर आ जाएगा पर मिट्टी का ढेला नीचे ही रह जाएगा। यानी कठिन समय आने पर या सब कुछ छिन जाने पर भी विद्वान व्यक्ति उन्नति के रास्ते दोबारा निकाल लेगा लेकिन मूर्ख के लिए शायद ऐसा संभव नहीं होता।
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भारतीय संविधान की मूल भावना है, ‘जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार।’ यानी हमारे संविधान निर्माता हर स्तर पर आम आदमी और सरकार और प्रशासन में उसकी भागीदारी को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे। भारतीय प्रशासनिक एवं राजनीतिक प्रणाली की संरचना इस प्रकार की गई थी कि यह एक लोक-कल्याणकारी राज्य बने जिसमें हर धर्म, वर्ग, जाति, लिंग और समाज के व्यक्ति को देश के विकास में भागीदारी के बराबर के अवसर मिलें। क्या यह संभव है कि देश के विकास में नागरिकों की सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करके देश में सच्चे प्रजातंत्
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नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के रोजगार के आंकड़े सामने आते ही विरोधी दलों ने शोर-शराबा शुरू कर दिया है क्योंकि उन्हें शोर मचाने के लिए एक आकर्षक मुद्दा मिल गया है। हालांकि योजना आयोग के मुख्य सलाहकार प्रणब सेन ने कहा है कि सैंपल में खामियां हो सकती हैं और सर्वे के नतीजों को प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक वर्ष 2004-05 से लेकर 2009-10 के बीच यूपीए सरकार की नीतियों से प्रति वर्ष सिर्फ दो लाख रोजगार ही पैदा हुए हैं। एनएसएसओ के ही आकंड़े ये बताते हैं कि एनडीए के शासन या
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सब जानते हैं कि पुरुषों और महिलाओं की समानताओं और विषमताओं की बहस शाश्वत है और यह भविष्य में भी जारी रहेगी। महिला अधिकारों के झंडाबरदारों ने महिला और पुरुष अधिकारों की समानता की मांग उठाकर इसे एक अलग ही रंग दे दिया। भारतीय संसद अभी तक महिला आरक्षण के बारे में अनिश्चित है, भारतीय समाज इस समस्या से अनजान है और भारतीय मीडिया के लिए यह एक फैशनेबल मुद्दा मात्र है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मीडिया में महिला आरक्षण, पुरुषों द्वारा महिलाओं के शोषण और महिला अधिकारों की बात की जाती है।
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राजाओं-महाराजाओं के समय से ही विश्व भर में टैक्स की परंपरा रही है। उसका नाम चाहे कुछ भी हो, रूप चाहे कुछ भी हो, लगान यानी टैक्स सदा से सभ्य समाज का हिस्सा रहे हैं। सरकार चलानी है तो सरकार चलाने पर खर्च भी होगा। खर्च होगा तो खर्च की भरपाई के लिए आय होनी चाहिए और सरकार के पास आय के तीन प्रमुख साधन हैं -- पहला, सरकारी संसाधनों और परिसंपत्तियों से आय, दूसरा, सरकारी सेवाओं और उत्पादों से आय, और तीसरा, टैक्स से आय।
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तेल कंपनियों ने एक बार फिर पेट्रोल के दाम बढ़ा दिये हैं। वर्ष 2008 के बाद एक साथ 5 रुपये प्रति लीटर बढ़ाए गए हैं जो इस कैलेंडर वर्ष की दूसरी सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी है। पिछले 11 महीनों में यह बढ़ोत्तरी नौवीं बार की गई है। हालत यह है कि पेट्रोल के दाम विमान के ईंधन के दाम से भी ज्य़ादा हो गए हैं। चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद की गई यह बढ़ोत्तरी सचमुच चुभने वाली है। अभी डीज़ल और रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि की आशंका अलग से है। अभी इस पर मंत्रियों की बैठक होने वाली है।
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