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- समसामयिक
आओ भारत को बनाएं ‘यंगिस्तान’
आदमी उम्र से
नहीं,
विचारों से बूढ़ा होता है। जब हम नये विचार ग्रहण करना बंद कर देते
हैं तो हम बूढ़े हो जाते हैं। देश के समग्र विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम अन्य
व्यक्तियों के दृष्टिकोण के प्रति दिमाग खुला रखें और उनसे लाभ लेने के लिए आवश्यक
माहौल तैयार करें। युवाशक्ति की प्रशंसा इसीलिए की जाती है कि उनमें उर्जा तो बहुत
होती है पर पूर्वाग्रह नहीं होता और वे दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति खुले दिमाग
से सोचते हैं। अगर देश के सभी नागरिक हर मामले में युवा वर्ग के इसी दृष्टिकोण का
अनुसरण करें तो हमारा देश ‘यंगिस्तान’ बन
जाएगा। ‘यंगिस्तान’ का मतलब है खुला
दिमाग, दूसरों के नज़रिये के प्रति सहनशीलता, नई बातें सीखने का जज़्बा, काम से जी न चुराना,
तकनीक का लाभ उठाने की योग्यता, प्रगति और
रोज़गार के नए और ज्य़ादा अवसर, आपसी भाईचारा तथा देश और
क्षेत्र का समग्र विकास !
भारतीय संविधान
की मूल भावना है, ‘जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता की सरकार।’ यानी
हमारे संविधान निर्माता हर स्तर पर आम आदमी और सरकार और प्रशासन में उसकी भागीदारी
को सर्वोच्च प्राथमिकता देते थे। भारतीय प्रशासनिक एवं राजनीतिक प्रणाली की संरचना
इस प्रकार की गई थी कि यह एक लोक-कल्याणकारी राज्य बने जिसमें हर धर्म, वर्ग, जाति, लिंग और समाज के
व्यक्ति को देश के विकास में भागीदारी के बराबर के अवसर मिलें। क्या यह संभव है कि
देश के विकास में नागरिकों की सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करके देश में सच्चे
प्रजातंत्र का माहौल बनाया जाए? अगर ऐसा हो सका तो यह देश
में प्रजातंत्र की मजबूती की दिशा में उठाया गया एक सार्थक कदम सिद्ध होगा।
लोकतंत्र में
तंत्र नहीं, बल्कि ‘लोक’
की महत्ता होनी चाहिए। तंत्र का महत्व सिर्फ इतना-सा है कि काम
सुचारू रूप से चले, व्यक्ति बदलने से नियम न बदलें, परंतु इसे दुरूह नहीं होना चाहिए और लोक पर हावी नहीं होने देना चाहिए। जब
ऐसा होगा तभी हमारा लोकतंत्र सफल होगा, लेकिन ऐसा होने के
लिए हमें अपने आप को बदलना होगा, हर नागरिक को अपने आप को
बदलना होगा। यह काम कोई सरकार नहीं कर सकती, प्रशासन नहीं कर
सकता, लोग कर सकते हैं। हमें याद रखना होगा कि सरकारें कभी
क्रांति नहीं लातीं। क्रांति की शुरुआत सदैव जनता की ओर से हुई है। अब जनसामान्य
और प्रबुद्धजनों को एकजुट होकर एक शांतिपूर्ण क्रांति की नींव रखने की आवश्यकता
है। ई-गवर्नेंस, शिक्षा का प्रसार, अधिकारों
के प्रति जागरूकता और भय और लालच पर नियंत्रण से हम निरंकुश अधिकारियों और
राजनीतिज्ञों को काबू में रख सकते हैं।
हमारे देश के
सामने कई समस्याएं दरपेश हैं पर आम जनाता में उनको लेकर कुंठा तो रहती है,
कोई सार्थक बहस नहीं होती, या फिर इतने छोटे
स्तर पर बहस होती है कि उसका प्रशासन और सरकार पर असर नहीं होता, या फिर सिर्फ बहस ही होती रह जाती है।
जीवन में चार
तरह की स्वतंत्रताएं महत्वपूर्ण हैं। एक -- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,
दो -- धर्म की स्वतंत्रता, तीन -- अभावों से
छुटकारा और चार -- भय से आज़ादी। भारतवर्ष में हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
प्राप्त है। लेकिन हमारे देश में अभी अभावों से आज़ादी और भय से आज़ादी एक सपना
है। अशिक्षा सेवा, सामान्य चिकित्सा सेवा का अभाव, पीने योग्य पानी की समस्या, सफाई का अभाव, रोज़गार की कमी, भूख और कुपोषण आदि समस्याएं,
महंगाई, भ्रष्टाचार आदि समस्याएं विकराल हैं
और आम आदमी को इनसे राहत की कोई राह नज़र नहीं आती। पर क्या सचमुच इनका हल नहीं है?
क्या सचमुच इसमें सारा दोष प्रशासन और सरकार का ही है? क्या हम सेमिनार और भाषण से आगे बढक़र कुछ और नहीं कर सकते? क्या हमारे पास इन समस्याओं से छुटकारा पाने का कोई भी साधन नहीं है?
गरीबी और
बेरोज़गारी से छुटकारा संभव है, यदि गरीबी और
बेरोज़गारी से छुटकारा मिल जाए तो शिक्षा, चिकित्सा, सफाई, पानी, कुपोषण, महंगाई आदि समस्याएं खुद-ब-खुद हल हो जाती हैं। बहुत से लोग अज्ञान के
कारण अथवा अपने निहित स्वार्थों की खातिर विकास के विरोध में खड़े नज़र आते हैं।
कई एनजीओ और राजनीतिक नेता जानते-बूझते भी विरोध की राह पकड़ते हैं और आम आदमी
उनके षड्यंत्र का शिकार हो जाता है।
अभी पिछले ही
वर्ष हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग के अध्यक्ष डा. विजय कुमार
शर्मा,
उनकी सहयोगी निशु शर्मा तथा कोटखाई के डीएवी कालेज के रोशन लाल
वशिष्ठ ने एक अध्ययन में पाया कि राज्य के उन क्षेत्रों का तेजी से विकास हुआ है
जहां औद्योगीकरण आया। प्रदेश के जिन हिस्सों में उद्योगों की स्थापना हुई वहां
ढांचागत सुविधाएं, शिक्षा सुविधाएं, सडक़,
बिजली, पानी की सुविधाएं, बैंकिंग व्यवस्था, आवासीय व्यवस्था तथा शॉपिंग
सुविधाओं आदि में तेजी से विकास हुआ है। इन विद्वानों का मत है कि स्थानीय लोगों
द्वारा राज्य में उद्योगों की स्थापना के किसी भी कदम का सदैव विरोध होता रहा है,
अत: यह आवश्यक था कि औद्योगिक विकास के कारण होने वाले विकास के
उदाहरणों को जनता के सम्मुख लाया जाए ताकि इस संबंध में पाली जा रही मिथ्या
धारणाओं को तोड़ा जा सके।
डा. विजय कुमार
शर्मा ने इन परिणामों पर टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘‘यह शोध कार्य इसलिए आरंभ किया गया था ताकि हम हिमाचल प्रदेश में
औद्योगीकरण के प्रभावों का पता लगा सकें। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हिमाचल
प्रदेश पर्यावरण की दृष्टि से एक संवेदनशील राज्य है और लोगों की धारणा है कि
विकास का हर प्रयास राज्य के समग्र संतुलन के लिए हानिकारक होगा। इसके विपरीत,
हमारे अध्ययन से यह साबित हुआ है कि उद्योगों के विस्तार ने राज्य
में विकास की गति तेज की है। उद्योगों की स्थापना का यह मतलब कतई नहीं है कि वे
संतुलन के लिए हानिकारक ही होंगे। इसके विपरीत, उद्योगों के
विकास से उन क्षेत्रों तथा स्थानीय लोगों के विकास की रफ्तार तेज हो सकती है।’’
दूसरी ओर ऐसी
कंपनियों की भी कमी नहीं है जिन्होंने पर्यावरण की अनदेखी करते हुए आसपास के लोगों
को उपहारस्वरूप कई तरह की बीमारियां दीं, उन्हें
उनके मूल निवास से उजाड़ा और उनके पुनर्वास के लिए कुछ भी नहीं किया, या जो किया सिर्फ दिखावे के लिए किया। अत: औद्योगीकरण के लाभ पर लट्टू हुए
बिना इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उद्योग से पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे,
औद्योगीकरण के कारण विस्थापित लोगों के पुनर्वास और रोजग़ार का काम
भी साथ-साथ चले, और विकास की राह में अनावश्यक रोड़े भी न
अटकें। तभी गरीबी दूर होगी, अभावों से छुटकारा मिलेगा और शेष
समस्याओं के हल की राह निकलेगी।
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Leslie Alexander
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