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क्या कहते हैं लेखक

'आजादी : सपना और हकीकत' में 2006 से 2022 तक के कुल 54 स्तंभ-लेख हैं। यहाँ बंद ढक्कनों को हटाकर वास्तविकता को समझने का प्रयत्न प्रमुख है, जिससे हम यह जान सकें कि कैसे समय और समाज में हम सब जी रहे हैं। मेरी मुख्य चिंता में देश की दशा और दुर्दशा है।

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डॉ. रविभूषण

लेखक

'हिंदू धर्म : भारतीय दृष्टि’ में देखा जा सकता है कि हजारों साल से हिंदू धार्मिक परंपरा किस तरह बहुलतापरक रही है। हिंदू धर्म को सनातन की एकरूपता में सीमित करने की कोशिशें किस तरह 19वीं सदी के नवजागरण, सुधारवादी आंदोलनों और आगे चलकर गांधी के उदारवाद के विरोध में हुई थीं।

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डॉ. शंभुनाथ

लेखक व संपादक वागर्थ पत्रिका

'फूल को याद थे सारे मौसम' बीसवीं सदी के सातवें दशक से लेकर इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक तक लिखी गईं ये कविताएँ यहाँ एक साथ संकलित हैं। ये मेरे उन नौ संग्रहों से चुनी गई हैं जिन्हें मेरा कवि मन जब-तब लिखता रहा है। ये कविताएँ मेरे जीवन की भी पहचान बनती गई हैं।

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डॉ. विजय बहादुर सिंह

लेखक

'हिंदी नवजागरण: भारतेंदु और उनके बाद' भारत के शिक्षित लोग आधुनिक जीवन शैली, ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भी आगे बढ़ते हैं और वे राजनीतिक नेतृत्व में भी हैं, लेकिन आमतौर पर सामंती तत्व पर उनका पीछा नहीं किया जाता है।

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डॉ. शंभुनाथ

लेखक व संपादक वागर्थ पत्रिका

'चिठिया बाँचौं हमार ...' दर्द में डूबी जिंदगी और अंधेरी-गहरी खाई में बिसुरता मन, आँसुओं की अंतिम बूँद लुटाकर रिश्तों-नातों की गुहार लगाया। दुःसह दुकाल की अजस्र उर्वरता के कागजी साक्ष्य ‘चिठिया बाँचौ हमार’ में एकत्रित हुए।

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डॉ. कल्पना दीक्षित

लेखिका

‘कोचिंग@कोटा’ उपन्यास नायक समीर के माध्यम से किशोर बच्चों के मनोभावों, ऊहापोह, संघर्षशील दिनचर्या, अकेलेपन और संगति-कुसंगति के परिणाम की ऐसी कहानी है जिससे हर पाठक स्वयं को कनेक्ट करता है। आज कोटा सपनों की दुनिया का प्रवेश द्वार है। जहाँ सपने साकार भी होते हैं और बिखर भी जाते हैं।

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अरुण अर्णव खरे

यांत्रिक अभियंता

'बिहार की विरासत और नवनिर्माण की चुनौती' आज भी बिहार मनुष्य को 'आर्थिक प्राणी' मात्र मानने की अति से बचा हुआ है, इसीलिए मनुष्य को एक सामाजिक और नैतिक प्राणी रहने देने की ज़िम्मेवारी भी बिहार पर ही ज़्यादा है। यह सवाल आधुनिक सभ्यता के मूल्य-बोध से टकराता है जो मनुष्य को जिंस बनाने पर आमादा है।

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शिवदयाल

कवि व कथाकार
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